अमरकोषसम्पद्

         

पातालभोगिवर्गः 1.8.9

अहेः शरीरं भोगः स्यादाशीरप्यहिदंष्ट्रिका
त्रिष्वाहेयं विषास्थ्यादि स्फटायां तु फणा द्वयोः
समौ कञ्चुकनिर्मोकौ क्ष्वेडस्तु गरलं विषम्

भोग (पुं) = सर्पशरीरम्. 1.8.9.1.1

आशिस् (स्त्री) = विषपूर्णाहिदंष्ट्रा. 1.8.9.1.2

आहेय (वि) = सर्पविष-अस्थ्यादिः. 1.8.9.2.1

स्फटा (स्त्री-पुं) = फणः. 1.8.9.2.2

फणा (स्त्री-पुं) = फणः. 1.8.9.2.3

कञ्चुक (पुं) = सर्पत्वक्. 1.8.9.3.1

निर्मोक (पुं) = सर्पत्वक्. 1.8.9.3.2

क्ष्वेड (पुं) = विषम्. 1.8.9.3.3

गरल (नपुं) = विषम्. 1.8.9.3.4

विष (पुं-नपुं) = विषम्. 1.8.9.3.5

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