अमरकोषसम्पद्

         

नानार्थवर्गः 3.3.226

त्विट् शोभापि त्रिषु परे न्यक्षं कार्त्स्न्यनिकृष्टयोः
प्रत्यक्षेऽधिकृतेऽध्यक्षो रूक्षस्त्वप्रेम्ण्यचिक्कणे
व्याजसंख्याशरव्येषु लक्षं घोषौ रवव्रजौ
कपिशीर्षं भित्तिशृङ्गेऽनुतर्षश्चषकः सुरा
दोषो वातादिके दोषा रात्रौ दक्षोऽपि कुक्कुटे
शुण्डाग्रभागे गण्डूषो द्वयोश्च मुखपूरणे

त्विष् (स्त्री) = शोभा. 3.3.226.1.1

न्यक्ष (वि) = कार्त्स्न्यम्. 3.3.226.1.2

न्यक्ष (वि) = अधमम्. 3.3.226.1.2

अध्यक्ष (वि) = प्रत्यक्षः. 3.3.226.2.1

रूक्ष (वि) = अप्रेमः. 3.3.226.2.2

रूक्ष (वि) = अचिक्कणः. 3.3.226.2.2

लक्ष (नपुं) = व्याजम्. 3.3.226.3.1

लक्ष (नपुं) = लक्षसङ्ख्या. 3.3.226.3.1

घोष (पुं) = शब्दः. 3.3.226.3.2

घोष (पुं) = गवां स्थानम्. 3.3.226.3.2

कपिशीर्ष (नपुं) = भित्तिः. 3.3.226.4.1

कपिशीर्ष (नपुं) = शृङ्गः. 3.3.226.4.1

अनुतर्ष (पुं) = चषकः. 3.3.226.4.2

अनुतर्ष (पुं) = सुरा. 3.3.226.4.2

दोष (पुं) = वातादयः. 3.3.226.5.1

दोषा (अव्य) = रात्रिः. 3.3.226.5.2

दक्ष (वि) = कुक्कुटः. 3.3.226.5.3

गण्डूष (पुं) = शुण्डाग्रभागः. 3.3.226.6.1

गण्डूष (स्त्री-पुं) = मुखे जलपूरणम्. 3.3.226.6.1

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