अमरकोषसम्पद्

         

नानार्थवर्गः 3.3.255

ऊरर्यूरी चोररी च विस्तारेऽङ्गीकृतौ त्रयम्
स्वर्गे परे च लोके स्वर्वार्तासम्भाव्ययोः किल

ऊररी (अव्य) = अङ्गीकृतिः. 3.3.255.1.1

ऊररी (अव्य) = विस्तरः. 3.3.255.1.1

ऊरी (अव्य) = अङ्गीकृतिः. 3.3.255.1.2

ऊरी (अव्य) = विस्तरः. 3.3.255.1.2

उररी (अव्य) = अङ्गीकृतिः. 3.3.255.1.3

उररी (अव्य) = विस्तरः. 3.3.255.1.3

स्वर् (अव्य) = परलोकः. 3.3.255.2.1

किल (अव्य) = सम्भाव्यः. 3.3.255.2.2

किल (अव्य) = वार्ता. 3.3.255.2.2

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