अमरकोषसम्पद्

         

व्यलीक (नपुं) == दुःखम्

पीडार्थेऽपि व्यलीकं स्यादलीकं त्वप्रियेऽनृते 
नानार्थवर्गः 3.3.12.2.1

पर्यायपदानि
 पीडार्थेऽपि व्यलीकं स्यादलीकं त्वप्रियेऽनृते॥
 अत्ययोऽतिक्रमे कृच्छ्रेदोषे दण्डेऽप्यथापदि॥
 आ प्रगृह्यस्स्मृतौ वाक्येऽप्यास्तु स्यात्कोपपीडयोः।
 खेदानुकम्पासन्तोषविस्मयामन्त्रणे बत।
 अहहेत्यद्भुते खेदे हि हेताववधारणे।
 मूल्ये पूजाविधावर्घोऽहोदुःखव्यसनेष्वघम्॥
 भृशप्रतिज्ञयोर्बाढं प्रगाढं भृशकृच्छ्रयोः॥
 आर्तिः पीडा धनुष्कोट्योर्जातिः सामान्यजन्मनोः।

 व्यलीक (नपुं)
 अघ (नपुं)
 प्रगाढ (नपुं)
 अर्ति (स्त्री)
 अत्यय (पुं)
 आस्तु (अव्य)
 बत (अव्य)
 अहह (अव्य)
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