अमरकोषसम्पद्

         

पातालभोगिवर्गः
पातालम्. (4) - अधोभुवन (नपुं), पाताल (नपुं), बलिसद्मन् (नपुं), रसातल (नपुं)
अधोभुनपातालं बलिसद्म रसातलम्
1.8.1.1
पातालम्. (1) - नागलोक (पुं)
बिलम्. (4) - कुहर (नपुं), सुषिर (नपुं), विवर (नपुं), बिल (नपुं)
नागलोकोऽथ कुहरं शुषिरं विवरं बिलम्
1.8.1.2
बिलम्. (7) - छिद्र (नपुं), निर्व्यथन (नपुं), रोक (नपुं), रन्ध्र (नपुं), श्वभ्र (नपुं), वपा (स्त्री), शुषि (स्त्री)
छिद्रं निर्व्यथनं रोकं रन्ध्रं श्वभ्रं वपा शुषिः
1.8.2.1
भूमौ वर्तमानं रन्ध्रम्. (2) - गर्त (स्त्री-पुं), अवट (पुं)
भूरन्ध्रम्. (1) - सुषिर (वि)
गर्तावटौ भुवि श्वभ्रे सरन्ध्रे सुषिरं त्रिषु
1.8.2.2
अन्धकारः. (5) - अन्धकार (पुं-नपुं), ध्वान्त (नपुं), तमिस्र (नपुं), तिमिर (नपुं), तमस् (नपुं)
अन्धकारोऽस्त्रियां ध्वान्तं तमिस्रं तिमिरं तमः
1.8.3.1
घनान्धकारः. (1) - अन्धतमस (नपुं)
क्षीणतमस्. (1) - अवतमस (नपुं)
ध्वान्ते गाढेऽन्धतमसं क्षीणोऽन्धतमसं तमः
1.8.3.2
व्यापकतमस्. (1) - सन्तमस (नपुं)
नागाः. (2) - नाग (पुं), काद्रवेय (पुं)
विष्वक्संतमसं नागाः काद्रवेयास्तदीश्वराः
1.8.4.1
नागानाम् स्वामिः. (2) - शेष (पुं), अनन्त (पुं)
नागराजः. (2) - वासुकि (पुं), सर्पराज (पुं)
सर्पविशेषः. (1) - गोनस (पुं)
शेषोऽनन्तो वासुकिस्तु सर्पराजोऽथ गोनसे
1.8.4.2
सर्पविशेषः. (1) - तिलित्स (पुं)
अजगरसर्पविशेषः. (3) - अजगर (पुं), शयु (पुं), वाहस (पुं)
तिलित्सः स्यादजगरे शयुर्वाहस इत्युभौ
1.8.5.1
जलव्यालसर्पविशेषः. (2) - अलगर्द (पुं), जलव्याल (पुं)
निर्विषः द्विमुखसर्पः. (2) - राजिल (पुं), डुण्डुभ (पुं)
अलगर्दो जलव्यालः समौ राजिलडुण्डुभौ
1.8.5.2
चित्रसर्पः. (2) - मालुधान (पुं), मातुलाहि (पुं)
मुक्तत्वचः सर्पः. (2) - निर्मुक्त (पुं), मुक्तकञ्चुक (पुं)
मालुधानो मातुलाहिर्निर्मुक्तो मुक्तकञ्चुकः
1.8.6.1
सर्पः. (6) - सर्प (पुं), पृदाकु (पुं), भुजग (पुं), भुजङ्ग (पुं), अहि (पुं), भुजङ्गम (पुं)
सर्पः पृदाकुर्भुजगो भुजङ्गोऽहिर्भुजङ्गमः
1.8.6.2
सर्पः. (5) - आशीविष (पुं), विषधर (पुं), चक्रिन् (पुं), व्याल (पुं), सरीसृप (पुं)
आशीविषो विषधरश्चक्री व्यालः सरीसृपः
1.8.7.1
सर्पः. (5) - कुण्डलिन् (पुं), गूढपाद् (पुं), चक्षुःश्रवस् (पुं), काकोदर (पुं), फणिन् (पुं)
कुण्डली गूढपाच्चक्षुःश्रवाः काकोदरः फणी
1.8.7.2
सर्पः. (4) - दर्वीकर (पुं), दीर्घपृष्ठ (पुं), दन्दशूक (पुं), बिलेशय (पुं)
दर्वीकरो दीर्घपृष्ठो दन्दशूको बिलेशयः
1.8.8.1
सर्पः. (5) - उरग (पुं), पन्नग (पुं), भोगी (पुं), जिह्मग (पुं), पवनाशन (पुं)
उरगः पन्नगो भोगी जिह्मगः पवनाशनः
1.8.8.2
सर्पः. (4) - लेलिहान (पुं), द्विरसन (पुं), गोकर्ण (पुं), कञ्चुकिन् (पुं)
लेलिहानो द्विरसनो गोकर्णः कञ्चुकी तथा
1.8.8.3
सर्पः. (4) - कुम्भीनस (पुं), फणधर (पुं), हरि (पुं), भोगधर (पुं)
कुम्भीनसः फणधरो हरिर्भोगधरस्तथा
1.8.8.4
सर्पशरीरम्. (1) - भोग (पुं)
विषपूर्णाहिदंष्ट्रा. (1) - आशिस् (स्त्री)
अहेः शरीरं भोगः स्यादाशीरप्यहिदंष्ट्रिका
1.8.9.1
सर्पविष-अस्थ्यादिः. (1) - आहेय (वि)
फणः. (2) - स्फटा (स्त्री-पुं), फणा (स्त्री-पुं)
त्रिष्वाहेयं विषास्थ्यादि स्फटायां तु फणा द्वयोः
1.8.9.2
सर्पत्वक्. (2) - कञ्चुक (पुं), निर्मोक (पुं)
विषम्. (3) - क्ष्वेड (पुं), गरल (नपुं), विष (पुं-नपुं)
समौ कञ्चुकनिर्मोकौ क्ष्वेडस्तु गरलं विषम्
1.8.9.3
स्थावरविषभेदाः. (3) - काकोल (पुं-नपुं), कालकूट (पुं-नपुं), हलाहल (पुं-नपुं)
पुंसि क्लीबे च काकोलकालकूटहलाहलाः
1.8.10.1
स्थावरविषभेदाः. (4) - सौराष्ट्रिक (पुं), शौक्लिकेय (पुं), ब्रह्मपुत्र (पुं), प्रदीपन (पुं)
सौराष्ट्रिकः शौक्लिकेयो ब्रह्मपुत्रः प्रदीपनः
1.8.10.2
स्थावरविषभेदाः. (2) - दारद (पुं), वत्सनाभ (पुं)
दारदो वत्सनाभश्च विषभेदा अमी नव
1.8.11.1
विषहारिवैद्यः. (2) - विषवैद्य (पुं), जाङ्गुलिक (पुं)
सर्पग्राहिः. (2) - व्यालग्राहिन् (पुं), अहितुण्डिक (पुं)
विषवैद्यो जाङ्गुलिको व्यालग्राह्यहितुण्डिकः
1.8.11.2

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